BHOPAL. नेताओं को अपनी जुबान से पलटते हुए तो आपने खूब देखा सुना होगा लेकिन इस बार यानी कि साल 2023 के चुनाव में नेता ऐसी पलटी मार रहे हैं कि आलाकमान तक सकते में है। ऐसे ही पलटीमार नेताओं को वफादारी याद दिलाने के लिए अमित शाह तीन दिन प्रदेश में बिता कर गए। उसका असर तो धीरे-धीरे साफ होगा। पर, अभी तो पलटीमार नेताओं की गिनती कम नहीं हो रही, ऐसे नेताओं का हौसला बढ़ाने के लिए इस बार मैदान में इतने छोटे दल हैं कि उन्हें आसरा भी तलाशना नहीं पड़ रहा है. बल्कि हालात ये है कि दलों के नाम से भरा एक कटोरा रखा है। जिसमें हाथ डालना है और मनचाही पर्ची निकालना है। जिस दल का नाम होगा वो तो पलक पावड़े बिछा कर उनका इंतजार कर ही रहा है, ऐसे नेताओं का टिकट तो पार्टी ने बड़े जोरशोर से काट दिया लेकिन अब उनके पलटी मारने से सबकी सांस फूली हुई है।
नेताओं ने थामा छोटे दलों का साथ
मध्यप्रदेश के चुनावी रण में इस बार छोटे दल बड़ा कमाल दिखाने वाले हैं। ये तो पहले से ही तय था, अब तो उन्हें अपनी-अपनी सीट के पुराने धुरंधरों का साथ भी मिलता जा रहा है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट कटने पर दलबदलू नेता बीजेपी और कांग्रेस दोनों का चुनावी समीकरण बिगाड़ सकते हैं। इन पलटीमार नेताओं को बसपा, सपा और आप हाथों हाथ ले रहे हैं। प्रदेश की कई सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बागियों ने मैदान संभाल लिया है। इनमें से कुछ दूसरे दलों से तो कुछ अन्य दलों से टिकट पाकर अपने मूल दल की मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी के बाद मध्यप्रदेश में जनला दल यूनाइटेड भी अपने उम्मीदवार उतारने लगी है। जेडीयू ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी है। बागियों को एक नया विकल्प मिल रहा है और पार्टियों को एक दमदार कैंडिडेट
मध्यप्रदेश में बढ़े ‘पलटीमार’
चुनावी बाजार में प्रत्याशियों की सेल लगी है। सेल भी ऐसी जिसमें मुंहमांगा दाम दूर की बात है, प्रत्याशी मुफ्त के भाव में मिल रहे हैं। वैसे हर चुनाव से पहले नाराजगी का ट्रेंड आम बात है, टिकट कटने पर दावेदार नाराजगी दिखाते हैं। कई बार निर्दलीय पर्चा भी भर देते हैं। इक्के दुक्के मामले में दूसरे दल से टिकट भी मिल जाता है, लेकिन इस बार तो जितने दावेदार उतने ही दल हैं। बस चूज करना है कि कौन सा दल बेहतर साबित हो सकता है। फायदा दोनों तरफ बराबरी का है वो भी हींग और फिटकरी के बिना। जीत गए तो सीट अपनी हारे तो नए दल को कोई खास घाटा नहीं, लेकिन इससे कांग्रेस और बीजेपी का नुकसान तय है। इसलिए नींद भी उड़ी हुई है।
बीजेपी में कंट्रोल में आई बगावत
नींद उड़ना लाजमी भी है क्योंकि दूसरे दलों का हाथ थाम कर जो प्रत्याशी मैदान में हैं वो अपने मूल दल के कद्दावर नेता रहे हैं। जीत न भी सके तो इतना डैमेज तो कर ही देंगे कि अपने मूल दल की जीत को मुश्किल बना देंगे या फिर दूसरे दल की जीत को आसान बना देंगे। ऐसे ही प्रत्याशियों की संख्या और बढ़े उससे पहले ही डैमेज कंट्रोल के लिए अमित शाह मध्यप्रदेश के दौरे पर आए थे। उसके बाद बीजेपी जरूर दावा कर रही है कि बगावत कंट्रोल में आई है।
पलटीमार नेताओं से बढ़ाई कांग्रेस की परेशानी
कांग्रेस में भी ऐसे दावेदारों पर कंट्रोल रखने के लिए कुछ जगह टिकट बदले गए लेकिन बगावत की आग आसानी से थमती कहीं नहीं दिख रही। कांग्रेस में हालात और भी मुश्किल इसलिए हैं क्योंकि यहां ऊपरी लेवल पर ही दिग्गजों में अनबन जारी है। ऐसे में कांग्रेस के लिए पलटीमार नेताओं से निपटना ज्यादा मुश्किल नजर आता है।
नाराज नेताओं की एंट्री से बढ़ा AAP का कुनबा, टिकट भी दिया
अब तक कई नेता अपने मूल दल को छोड़ कर नए दल का हाथ थाम चुके हैं। बीजेपी और कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने से नाराज कई नेताओं आम आदमी पार्टी का दामन थामा हैं। इतना ही नहीं अरविंद केजरीवाल की पार्टी उन्हे उनके क्षेत्र से टिकट देते हुए प्रत्याशी बना दिया है। आम आदमी पार्टी ने सागर से मुकेश जैन को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं सागर के पूर्व सांसद लक्ष्मी नारायण यादव के बेटे सुधीर यादव, जो बंडा से टिकट मांग रहे थे। सुधीर यादव ने टिकट नहीं मिलने के बाद कमलनाथ से मुलाकात की थी, लेकिन बात ना बनने पर उन्होंने भी आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। आम आदमी पार्टी में शामिल होते ही पार्टी ने सुधीर यादव को बंडा से प्रत्याशी घोषित कर दिया। अपनी मूल पार्टी पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं की लिस्ट लंबी हैं। अगला नाम अरविंद तोमर का है जो नरयावली विधानसभा सीट में बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर बीजेपी छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। यहां भी आप ने उन्हें टिकट देते हुए नरयावली सीट से प्रत्याशी बना दिया। बीजेपी से बगावत कर करने वाली ममता मीना को भी आम आदमी पार्टी ने चाचौड़ा से प्रत्याशी बनाया है। इधर कांग्रेस छोड़कर आप में दामन थामने राहुल सिंह कुशवाहा को भिंड विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। राहुल सिंह कुशवाह पिछले दिनों कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं।
BSP और SP ने भी दिए टिकट
बागी और नाराज नेताओं को बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में भी एंट्री मिली हैं। इन नेताओं को दोनों पार्टी ने प्रत्याशी भी बनाया हैं। बसपा ने राकेश सिंह को मुरैना से प्रत्याशी बनाया है। पूर्व विधायक रसाल सिंह को बसपा ने लहार से टिकट दिया हैं। रसाल सिंह भी टिकट कटने के बाद बसपा में शामिल हुए हैं। कांग्रेस छोड़ बसपा में शामिल हुए पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह को बीएसपी ने नवाजा है। बीएसपी ने उन्हे सतना की नागौद सीट से प्रत्याशी बनाया। इधर टिकट नहीं मिलने से नाराज BJP से पूर्व विधायक रेखा यादव ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। इसके बाद अखिलेश यादव की पार्टी ने रेखा यादव को बिजावर से सपा प्रत्याशी घोषित कर दिया। भिंड जिले की अटेर सीट पर पूर्व विधायक मुन्ना भदौरिया और रीवा की सेमरिया सीट पर पूर्व विधायक लक्ष्मण तिवारी को उतारा है, यह दोनों भी बीजेपी से सपा में शामिल हुए हैं। मुरैना से बीएसपी ने पूर्व विधायक मनीराम धाकड़ को टिकट दिया है।
जाहिर है ये प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं तो वोट जरूर काटेंगे क्योंकि पहचान इनके पास पर्याप्त है और एक जाना माना इलेक्शन सिंबल भी साथ है। इनकी मौजूदगी किसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी, मूल पार्टी को या फिर दूसरी पार्टी को बस इसका आंकलन करना शेष होगा। नामाकंन की डेट गुजरने के बाद अब ये सिलसिला थम चुका है। विरोध का बुलबुला अब ज्यादा जोर नहीं मार सकता। अब नजर सिर्फ फैसले पर होगी।
पुराने साथी करेंगे बड़ा उलटफेर?
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने रूठों को मनाने की खूब कोशिश की है, लेकिन कामयाबी पूरी तरह से नहीं मिल सकी। इस बार जब सीटों पर हार जीत का आंकलन होगा तब सिर्फ पार्टी के नाम याद रखने जरूरी नहीं होंगे पलटीमार प्रत्याशियों को भी याद रखना होगा, जो नए दल का हाथ थाम कर कांग्रेस और बीजेपी का खेल खराब करने के लिए कमर कस चुके हैं। फिलहाल कुछ चुनावी आंकलन हंग एसंबली की तरफ इशारा कर रहे हैं और कुछ हार जीत में सीटों का अंतर बहुत कम बता रहे हैं। ऐसा वाकई होता है तो आज के पलटीमार नेता कल के किंगमेकर भी हो सकते हैं।